मनुष्य का परम धर्म है कि वह सत्य को खोजें और उसे ही प्राप्त करें। आत्मा आपसे केवल इतनी ही अपेक्षा करती है कि आप उसके प्रति श्रद्धालु और आस्थावान बने रहें, अन्य अनित्य वस्तुओं से उसकी तुलना अपमान ना करें। मनुष्य मन प्राण अथवा शरीर की तुलना में उसको हेय समझने लगता है तब वह दुखी हो जाती है और उसकी मुक्ति का प्रयास मंद पड़ने लग जाता है। अपने प्रति श्रद्धालु और निष्ठावान व्यक्तियों को आत्मा शीघ्र ही दर्शन दिया करती है। संसार में रहते हुए भी उससे विरक्त एवं निर्मोही रहकर जो व्यक्ति मुख्य रूप से आत्मा तक ही केंद्रित हो जाते हैं वे उससे एकता प्राप्त कर शांत गंभीर और उपद्रव रहित हो जाते हैं। मनुष्य की निर्दन्द और उपद्रव रहित स्थिति ही वह शाश्वत सत्य है जिसकी खोज में मनुष्य भटक रहा है और वह उसके लक्ष्य सुख शांति का अविचल आधार है। आत्मा तक केंद्रित होने का यही अर्थ है कि मनुष्य मन प्राण एवं शरीर से परे अपने उस स्वरूप पर ध्यान करें जो व्यापक, विस्तृत एवं नीर्उपद्रव है। अपने मन प्राण और शरीर के पोषण में लगा रहना ही आत्मा के प्रति केंद्रीयता मानना भारी भूल होगी।मनुष्य सत्य की खोज कर रहा है और वह सत्य परमात्मा के अंश आत्मा में निहित है और जो मनुष्य का सच्चा एवं शाश्वत स्वरूप है।🙏